औरंगजेब: मुग़ल साम्राज्य का विवादास्पद शासक

मुग़ल साम्राज्य के इतिहास में औरंगजेब का नाम एक ऐसे शासक के रूप में उभरता है, जिसने अपने शासनकाल में विस्तार और धार्मिक कट्टरता के लिए ख्याति अर्जित की। उसका शासनकाल (1658-1707) मुग़ल साम्राज्य के चरम और पतन का काल माना जाता है। औरंगजेब ने अपने 49 वर्षों के शासन में भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर अपना आधिपत्य स्थापित किया, लेकिन उसकी नीतियों और कार्यों ने उसे एक विवादास्पद व्यक्तित्व बना दिया।

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प्रारंभिक जीवन और सत्ता संघर्ष

औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर, 1618 को गुजरात के दाहोद में हुआ था। वह शाहजहाँ और मुमताज़ महल की तीसरी संतान था। अपने भाइयों दारा शिकोह, शाह शुजा और मुराद बख्श के साथ उसका संघर्ष मुग़ल साम्राज्य के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। 1657 में शाहजहाँ की बीमारी के बाद औरंगजेब ने अपने भाइयों के खिलाफ़ सत्ता संघर्ष छेड़ दिया। इस संघर्ष में उसने अपने भाई दारा शिकोह को हराकर 1658 में खुद को मुग़ल सम्राट घोषित कर दिया।

शासनकाल की प्रमुख विशेषताएँ

औरंगजेब के शासनकाल को उसकी सैन्य सफलताओं, प्रशासनिक सुधारों और धार्मिक नीतियों के लिए जाना जाता है। उसने दक्कन, बंगाल और दक्षिण भारत में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार किया। उसकी सैन्य योजनाओं और रणनीतियों ने मुग़ल साम्राज्य को अपने चरम पर पहुँचाया। हालाँकि, उसकी धार्मिक नीतियों ने उसे विवादों में डाल दिया।

धार्मिक नीतियाँ और विवाद

औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने इस्लामिक कानून (शरिया) को अपने शासन का आधार बनाया और हिंदुओं पर जज़िया कर लगाया। उसने हिंदू मंदिरों को तोड़ने और हिंदू त्योहारों पर प्रतिबंध लगाने जैसे कदम उठाए। इसके अलावा, उसने सिख गुरु तेग बहादुर को मृत्युदंड दिया, जिससे सिख समुदाय में उसके प्रति आक्रोश पैदा हुआ। इन नीतियों के कारण उसे हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच अलोकप्रियता का सामना करना पड़ा।

दक्कन अभियान और मृत्यु

औरंगजेब ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष दक्कन में बिताए। उसने मराठा शासक शिवाजी और उनके उत्तराधिकारियों के खिलाफ़ लंबे समय तक संघर्ष किया। हालाँकि, मराठों के प्रतिरोध ने मुग़ल साम्राज्य को कमजोर कर दिया। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के साथ ही मुग़ल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।

विरासत

औरंगजेब की विरासत आज भी विवादास्पद है। एक ओर, उसे एक कुशल प्रशासक और सैन्य रणनीतिकार के रूप में याद किया जाता है, तो दूसरी ओर, उसकी धार्मिक कट्टरता और अल्पसंख्यकों के प्रति उसकी नीतियों की आलोचना की जाती है। उसके शासनकाल ने मुग़ल साम्राज्य को अपने चरम पर पहुँचाया, लेकिन उसकी नीतियों ने साम्राज्य के पतन की नींव भी रखी।

औरंगजेब का जीवन और शासनकाल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो हमें सत्ता, धर्म और नीति के जटिल संबंधों के बारे में सोचने पर मजबूर करता है।

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